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सꣳशि॑तो र॒श्मिना॒ रथः॒ सꣳशि॑तो र॒श्मिना॒ हयः॑। सꣳशि॑तो अ॒प्स्व᳖प्सु॒जा ब्र॒ह्मा सोम॑पुरोगवः ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सशि॑त॒ इति॒ सम्ऽशि॑तः। र॒श्मिना॑। रथः॑। सशि॑त॒ इति॒ सम्ऽशि॑तः। र॒श्मिना॑। हयः॑। सशि॑त॒ इति॒ सम्ऽशि॑तः। अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। अ॒प्सु॒जा इत्य॑प्सु॒ऽजा। ब्र॒ह्मा। सोम॑ऽपुरोगवः ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्यों से (रश्मिना) किरणसमूह से (रथः) आनन्द को सिद्ध करनेवाला यान (संशितः) अच्छे प्रकार सूक्ष्म कारीगरी से बनाया (रश्मिना) लगाम की रस्सी आदि से (हयः) घोड़ा (संशितः) भलीभाँति चलने में तीक्ष्ण अर्थात् उत्तम क्रिया तथा (अप्सु) प्राणों में (अप्सुजाः) जो प्राणवायु रूप से संचार करनेवाला पवन वा वाष्प (सोमपुरोगवः) ओषधियों का बोध और ऐश्वर्य्य का योग जिससे पहिले प्राप्त होनेवाला है, वह (ब्रह्मा) बड़ा योगी विद्वान् (संशितः) अतिप्रशंसित किया जाये तो क्या-क्या सुख न मिले ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पदार्थों के विशेष ज्ञान से विद्वान् होते हैं, वे औरों को विद्वान् करके प्रशंसा को पावें ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(संशितः) सम्यक्सूक्ष्मीकृतः (रश्मिना) किरणसमूहेन (रथः) रमणसाधनः (संशितः) (रश्मिना) (हयः) अश्वः (संशितः) स्तुतः (अप्सु) प्राणेषु (अप्सुजाः) प्राणेषु जायमानः (ब्रह्मा) महान् योगी विद्वान् (सोमपुरोगवः) सोम ओषधिगणबोध ऐश्वर्ययोगो वा पुरोगामी यस्य सः ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यदि मनुष्यै रश्मिना रथः संशितो रश्मिना हयः संशितोऽप्स्वप्सुजाः सोमपुरोगवो ब्रह्मा संशितः क्रियेत तर्हि किं किं सुखं न लभ्येत ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः पदार्थविज्ञानेन विद्वांसो भवन्ति, तेऽन्यान् कारयित्वा प्रशंसां प्राप्नुवन्तु ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे पदार्थांच्या विशेष ज्ञानाने विद्वान होतात ती इतरांना विद्वान करतात व त्यांची प्रशंसा होते.